Saturday, May 2, 2009

some quotes

प्रत्येक व्यक्ति इस भौतिक शारीर रुपी रथ पर आरूढ़ है और बुद्धि इसकी सारथी है, और मन लगाम है, तथा इन्द्रियां घोड़े हैं। इस प्रकार मन तथा इन्द्रियों की संगती से यह आत्मा सुख या दुःख का भोक्ता है। (६.३४ तात्पर्य)

इन्द्रिय विषयों का चिंतन करते हुए मनुष्य की उनमें आसक्ति उत्पन्न हो जाती है और ऐसी आसक्ति से काम विकासित हो जाता है और काम से क्रोध निर्माण हो जाता है। क्रोध से पूर्ण मोह उत्पन्न होता है और मोह से स्मरण शक्ति का विभ्रम हो जाता है। जब स्मरण शक्ति भ्रमित हो जाती है, तो बुद्धि  नष्ट हो जाती है, और बुद्धि नष्ट होने पर मनुष्य पुन: भव  कूप में गिर जाता हैं। (२.६२-६३)

भगवन ने कहा--हे भरतपुत्र! निर्भयता, आत्मशुद्धि, आध्यात्मिक ज्ञान का अनुशीलन, दान, एटीएम-संयम, यज्ञ परायणता, वेदाध्ययन, तपस्या, सरलता, अहिंसा, सत्यता, क्रोध विहीनता, त्याग, शांति, छिद्रानुएशन में अरुचि, समस्त जीवों पर करुणा, लोभ विहीनता, भद्रता, लज्जा, संकल्प, तेज, क्षमा, धैर्य, पवित्रता, इर्ष्य तथा सम्मान की अभिलाषा से मुक्ति--ये सारे दिव्य गुण हैं, जो दैवी प्रक्रति से संपन्न देव तुल्य पुरुषों में पाए जाते हैं।      
भगवद्गीता।

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